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रविवार, 16 जनवरी 2011
मंगलवार, 30 नवंबर 2010
विश्व सिनेमा में इतिहास से जुड़ी यादें - गोवा से अजित राय
भारत के 41वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में विश्वप्रसिद्ध फिल्मकार रोमन पोलांस्की की नयी फिल्म ‘द घोस्ट राइटर’ राजनैतिक कारणों से इन दिनों दुनिया भर में चर्चा में है। पोलांस्की ने इस फिल्म की पटकथा पिछले वर्ष तब पूरी की थी, जब स्विटजरलैंड पुलिस ने अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों के आग्रह पर उन्हें गिरफ्तार किया था। उन पर एक फिल्म की शूटिंग के दौरान एक कम उम्र की लड़की के साथ यौनाचार का आरोप लगाया गया था। पोलांस्की हमेशा अपने जीवन और फिल्मों के कारण विवाद में रहते हैं। इसके बावजूद इस फिल्मोत्सव में उनकी नयी फिल्म का प्रदर्शन एक बड़ी उपलब्धि है। इस फिल्म का प्रीमियर इसी वर्ष 12 फरवरी 2010 को 60वें बर्लिन अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में हुआ था, जहां उन्हें सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का सिल्वर बीयर पुरस्कार मिला।
‘द घोस्ट राइटर’ ब्रिटेन के एक पूर्व प्रधानमंत्री की कहानी है जो रिटायर होने के बाद अपना शेष जीवन अमेरिका के किसी द्वीप में बिता रहा है। उस पर आरोप है कि उसने एक युद्ध में अमेरिका का हद से बाहर जाकर अंध-समर्थन किया था। फिल्म के प्रदर्शन के बाद बीबीसी ने दावा किया था कि फिल्म का मुख्य चरित्र एडम लंग हूबहू ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर से मिलता है और फिल्म जिस युद्ध की बात की गई है, वो दरअसल इराक युद्ध है। यह साफ है कि टोनी ब्लेयर ने इराक युद्ध में अमेरिका का अंध-समर्थन किया था और ब्रिटिश जनता से झूठ भी बोला था कि इराकी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन के महल में रासायनिक हथियार हैं। लंदन के एक चर्चित अखबार ‘द इंडिपेंडेंट’ ने यह भी खुलासा किया है कि इस फिल्म के लिए जर्मन सरकार से भारी आर्थिक मदद मिली है। यह भी कहा जाता है कि जिस फिल्म को बर्लिन फिल्मोत्सव में सिल्वर बीयर मिलता है, उसे जर्मन सरकार भारी आर्थिक अनुदान देती है।
| Roman Polanski |
पोलैंड के बहुचर्चित फिल्मकार जान जाकूब कोलस्की की 8 फिल्मों का प्रदर्शन गोवा फिल्मोत्सव की एक खोज ही कही जायेगी। इस फिल्मकार के बारे में भारत में बहुत कम लोग जानते हैं। यहां हम उनकी ताजा फिल्म ‘वेनिस’ (2010) की चर्चा कर रहे हैं। इसमें द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान पोलैंड की राजधानी वारसा में एक 11 वर्षीय बच्चे मारक के सपनों के माध्यम से एक नया जादुई संसार रचा गया है। वैसे भी कोलस्की अपनी फिल्मों में जादुई यथार्थवाद के लिए भी जाने जाते हैं। यह फिल्म लोकप्रिय पोलैंड लेखक वुडमिर्ज ओडोजेवस्की के एक चर्चित उपन्यास पर आधारित है। अपनी सिनेमाई भाषा, पटकथा, संवाद, छायांकन और मार्मिक अपील के कारण ‘वेनिस’ गोवा फिल्मोत्सव की सबसे अधिक चर्चित फिल्मों में से एक है। लेखक का कहना है कि मैंने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान पोलैंड के समय का सारांश बताने की कोशिश की है, जिसमें भावनाएं, यातना, प्रेम, भय और घृणा सब कुछ है।
‘वेनिस’ जाने की प्रबल इच्छा रखने वाला मारक युद्ध के दौरान अपनी डायरी लिखता है। एक दिन वह लिखता है कि ‘’क्या रूसियों की तरह जर्मन भी ईश्वर में विश्वास करते हैं ? यदि हां, तो वे इतने बुरे क्यों हैं। मैं अब यहां नहीं रहना चाहता।‘’ उसकी आंटी उसे खुश करने के लिए अपने घर के तलघर में वेनिस शहर का एक मॉडल बनाती है, जिसमें नाव पर बैठकर मारक सचमुच के वेनिस शहर की सैर करता है। मारक लिखता है कि ‘’दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण चीज प्रेम है, मुझे अब प्रेम के बारे में सोचना चाहिए।’’ फिल्म में बहुत कम संवाद हैं। युद्ध के दृश्य तो बिल्कुल नहीं हैं। युद्ध में मरते, तबाह होते लोगों के परिवारों के दृश्य जरूर हैं। जो दुख और यातना की अंतहीन चादर लपेटे हुए अच्छे दिनों के आने का इंतजार कर रहे हैं। उनकी इस मुश्किल दुनिया में फिल्म उम्मीदों की रोशनी के रूप में बच्चों के सपनों को सामने ला खड़ा करती है।
ऑस्कर पुरस्कारों से सम्मानित फिल्म ‘स्लम डॉग मिलिनेयर’ की हीरोइन फ्रीडा पिंटो का यहां आना दर्शकों के लिए जबर्दस्त आकर्षण का विषय था। हालांकि अमेरिकी फिल्मकार वुडी एलेन की जिस नई फिल्म ‘यू विल मीट ए टॉल डार्क स्ट्रेंजर’ को दिखाया गया, उसमें फ्रीडा पिंटो का इस्तेमाल केवल शो पीस के तौर पर किया गया है। जैसे अनुपम खेर भी केवल 4 मिनट के लिए आते हैं। फिल्म की शुरूआत बड़े दार्शनिक अंदाज में होती है, जिसमें विलियम शेक्सपियर का एक प्रसिद्ध वाक्य हमें सुनाई देता है – ‘जीवन आवाजों और उन्मादों से भरा हुआ होता है लेकिन अंत में कुछ भी सार्थक नहीं बचता’। वुडी एलेन की यह फिल्म देखने के बाद सचमुच यह बात सार्थक हो जाती है क्योंकि हम एक दूसरे से यह पूछते हैं कि इस फिल्म का क्या मतलब है, यह सवाल और लाजमी है कि भारत के इस अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव में किसको चाहिए फ्रीडा पिंटो। हालांकि उन्होंने यह जरूर कहा कि इस फिल्म से उन्हें यह सीख मिली ‘’ उस पार मेरे लिए खुशियां ही खुशियां हैं’’। फ्रीडा पिंटो को भले ही खुशियां मिली हों पर फिल्म को देखकर निकले दर्शकों को भारी निराशा ही हाथ लगी।
बुधवार, 24 नवंबर 2010
'ईस्ट इज ईस्ट' के बाद अब 'वेस्ट इज वेस्ट' : गोवा से अजित राय
पणजी, गोवा, 23 नवम्बर
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| अजित राय |
भारत के 41वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह की उद्घाटन फिल्म ‘वेस्ट इज वेस्ट’ इस समारोह की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक है। यह फिल्म करीब एक दशक पहले बनी ‘ईस्ट इज ईस्ट’ का दूसरा भाग है, जिसने दुनिया भर में करीब 160 करोड़ रुपये का कारोबार किया था। यह फिल्म भारत के सुप्रसिद्ध अभिनेता ओमपुरी को विश्व के महान अभिनेताओं की पंक्ति में ला खड़ा करती है। ब्रिटिश फिल्म की निर्माता लैस्ली एडविन ने बताया कि लगभग 18 करोड़ रुपये की लागत वाली यह फिल्म ब्रिटेन और भारत में अगले वर्ष 25 फरवरी को एक साथ रिलीज की जाएगी। इसमें मुख्य भूमिकाएं ब्रिटिश कलाकारों के साथ ओमपुरी, इला अरुण, विजयराज, राज भंसाली आदि भारतीय कलाकारों ने निभाई है। उन्होंने कहा कि वे इस श्रंखला की तीसरी फिल्म ‘ईस्ट इज वेस्ट’ की पटकथा पर तेजी से काम कर रही हैं।
‘वेस्ट इज वेस्ट’ ब्रिटेन के मैनचेस्टर शहर में साल्फोर्ड इलाके में बसे एक पाकिस्तानी जहांगीर खान की कहानी है जो 35 साल पहले 1940 में अपनी पहली बीवी बशीरा और अपनी बेटियों को छोड़कर आ गया था। मैनचेस्टर में उसने एक आयरिश महिला से प्रेम विवाह किया जिससे उसके कई बेटे हुए। ‘ईस्ट इज ईस्ट’ 1975 के ब्रिटेन में पाकिस्तानी समाज के जिस सांस्कृतिक संकट पर खत्म होती है, वहीं से ‘वेस्ट इज वेस्ट’ शुरू होती है। ‘ईस्ट इज ईस्ट’ के अंतिम दृश्य में हमने देखा था कि जहांगीर खान अपनी पत्नी एली पर हाथ उठाता है, तभी उसका बड़ा बेटा उसका हाथ पकड़ लेता है। उसे अब लगता है कि पुराने सामंती मूल्यों के सहारे अब उसका परिवार नहीं चल सकता। ‘वेस्ट इज वेस्ट’ की शुरूआत जहांगीर खान की पाकिस्तान यात्रा से होती है। जहां वह 35 साल पहले अपने परिवार को छोड़ गया था। वह अपने दो बेटों को साथ लाता है और चाहता है कि दोनों पाकिस्तानी की तरह प्रशिक्षित हों। उसे पता चलता है कि इन पैंतीस सालों में सब कुछ वैसा ही नहीं है, जैसा वह छोड़ कर गया था। उसे बहुत ग्लानि होती है कि उसने अपने पहले परिवार की घोर उपेक्षा की है। इसी पारिवारिक संघर्ष पूरब और पश्चिम की संस्कृतियों की टकराहट और नए पुराने मूल्यों की रस्साकसी के बीच फिल्म आगे बढ़ती है। इस फिल्म की शूटिंग भारत के पंजाब प्रांत में हुई थी क्योंकि पाकिस्तान सरकार ने निर्माताओं को इसकी अनुमति नहीं दी थी।
‘वेस्ट इज वेस्ट’ में 1976 के एक पाकिस्तानी गांव के परिवेश की जीवंत तस्वीर पेश की गई है। माहौल को वास्तविक बनाने के लिए छोटी से छोटी बातों का ख्याल रखा गया है। यहां तक की जहांगीर खान का छोटा बेटा साजिद ‘पंजाब’ को ‘पुंजाब’ कहता है क्योंकि अंग्रेजी में उसने पीयूएनजेएबी पढ़ा है। फिल्म मानवीय रिश्तों की परतों के बीच सांस्कृतिक अस्मिता के संघर्ष को ताजगी के साथ प्रस्तुत करती है। पूरी फिल्म में कहीं भी शोर, हिंसा, एक्शन और भड़काऊ चमक-दमक नहीं है। रोब लेन और शंकर अहसान लॉय का अद्भुत सूफी संगीत दर्शकों को एक रूहानी दुनिया में ले जाता है। एक-एक दृश्य खूबसूरत चित्र की तरह है। दृश्यों के रंग चरित्रों के आपसी संवाद और उनके मनोभावों को दिखाते हैं। फिल्म में एक ऐसी दुनिया रची गई है जहां हर पात्र अपनी-अपनी जगह सही होते हुए भी एक अनवरत यातना सह रहा है। अंत में हम देखते हैं कि जब जहांगीर खान की दूसरी पत्नी एली उसे ढूंढते हुए ब्रिटेन से पाकिस्तान पहुंचती है और काफी उहापोह के बाद जहांगीर खान अपने बच्चों के साथ वापस ब्रिटेन लौटने का फैसला करता है तो वह कहता अपनी पहली पत्नी से कहता है ‘’मैंने जो जीवन चुना था, वह यह नहीं है।‘’
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| ओमपुरी वेस्ट इज वेस्ट के एक दृश्य में |
‘वेस्ट इज वेस्ट’ में जहांगीर खान के केन्द्रीय चरित्र को ओमपुरी ने अपने अभिनय से अविस्मरणीय बना दिया है। लेस्ली एडविन ने फिल्म के प्रदर्शन के मौके पर ठीक ही कहा कि ‘’ओमपुरी विश्व के महान अभिनेताओं में से एक हैं। ‘’ उन्होंने एक पिता, दो पत्नियों के पति, पाकिस्तानी मुसलमान और ब्रिटिश नागरिक के रूपों को एक ही चरित्र में सुंदर तरीके से समायोजित किया है। उनके बचपन की जो दुनिया छूट गई है उसे वे अपने बच्चों के माध्यम से पाना चाहते हैं। लेकिन बच्चों के सामने आधुनिक ब्रिटेन और यूरोप है। फिल्म में संवादों से अधिक चरित्रों का मौन बोलता है। एक विलक्षण दृश्य में जहांगीर खान की पहली पत्नी बशीरा और दूसरी पत्नी एली का संवाद है। बशीरा अंग्रेजी नहीं जानती जबकि एली को पंजाबी नहीं आती। बशीरा पंजाबी बोलती है और एली अंग्रेजी में उसका जवाब देती है। यह दो स्त्रियों का अद्भुत संवाद है। जो दिल की धड़कनों की भाषा से एक दूसरे को समझने की कोशिश करती हैं। बीच-बीच में सूफी संत समय की व्याख्या करते रहते हैं। किशोर साजिद अपनी तरह से पाकिस्तानी गांव में एक नई और रोमांचक दुनिया से परिचित होता है।
फिल्म की निर्माता लेस्ली एडविन ने खचाखच भरे सभागार में हिंदी में दर्शकों से मुखातिब होकर सबको खुश कर दिया। उन्होंने हिंदी में कहा कि इस फिल्म समारोह में ‘वेस्ट इज वेस्ट’ के प्रदर्शन के मौके पर मैं इतनी खुश हूं कि मेरे पैर जमीन पर नहीं हैं।
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