भारत के 41वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में विश्वप्रसिद्ध फिल्मकार रोमन पोलांस्की की नयी फिल्म ‘द घोस्ट राइटर’ राजनैतिक कारणों से इन दिनों दुनिया भर में चर्चा में है। पोलांस्की ने इस फिल्म की पटकथा पिछले वर्ष तब पूरी की थी, जब स्विटजरलैंड पुलिस ने अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों के आग्रह पर उन्हें गिरफ्तार किया था। उन पर एक फिल्म की शूटिंग के दौरान एक कम उम्र की लड़की के साथ यौनाचार का आरोप लगाया गया था। पोलांस्की हमेशा अपने जीवन और फिल्मों के कारण विवाद में रहते हैं। इसके बावजूद इस फिल्मोत्सव में उनकी नयी फिल्म का प्रदर्शन एक बड़ी उपलब्धि है। इस फिल्म का प्रीमियर इसी वर्ष 12 फरवरी 2010 को 60वें बर्लिन अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में हुआ था, जहां उन्हें सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का सिल्वर बीयर पुरस्कार मिला।
‘द घोस्ट राइटर’ ब्रिटेन के एक पूर्व प्रधानमंत्री की कहानी है जो रिटायर होने के बाद अपना शेष जीवन अमेरिका के किसी द्वीप में बिता रहा है। उस पर आरोप है कि उसने एक युद्ध में अमेरिका का हद से बाहर जाकर अंध-समर्थन किया था। फिल्म के प्रदर्शन के बाद बीबीसी ने दावा किया था कि फिल्म का मुख्य चरित्र एडम लंग हूबहू ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर से मिलता है और फिल्म जिस युद्ध की बात की गई है, वो दरअसल इराक युद्ध है। यह साफ है कि टोनी ब्लेयर ने इराक युद्ध में अमेरिका का अंध-समर्थन किया था और ब्रिटिश जनता से झूठ भी बोला था कि इराकी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन के महल में रासायनिक हथियार हैं। लंदन के एक चर्चित अखबार ‘द इंडिपेंडेंट’ ने यह भी खुलासा किया है कि इस फिल्म के लिए जर्मन सरकार से भारी आर्थिक मदद मिली है। यह भी कहा जाता है कि जिस फिल्म को बर्लिन फिल्मोत्सव में सिल्वर बीयर मिलता है, उसे जर्मन सरकार भारी आर्थिक अनुदान देती है।
Roman Polanski |
पोलैंड के बहुचर्चित फिल्मकार जान जाकूब कोलस्की की 8 फिल्मों का प्रदर्शन गोवा फिल्मोत्सव की एक खोज ही कही जायेगी। इस फिल्मकार के बारे में भारत में बहुत कम लोग जानते हैं। यहां हम उनकी ताजा फिल्म ‘वेनिस’ (2010) की चर्चा कर रहे हैं। इसमें द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान पोलैंड की राजधानी वारसा में एक 11 वर्षीय बच्चे मारक के सपनों के माध्यम से एक नया जादुई संसार रचा गया है। वैसे भी कोलस्की अपनी फिल्मों में जादुई यथार्थवाद के लिए भी जाने जाते हैं। यह फिल्म लोकप्रिय पोलैंड लेखक वुडमिर्ज ओडोजेवस्की के एक चर्चित उपन्यास पर आधारित है। अपनी सिनेमाई भाषा, पटकथा, संवाद, छायांकन और मार्मिक अपील के कारण ‘वेनिस’ गोवा फिल्मोत्सव की सबसे अधिक चर्चित फिल्मों में से एक है। लेखक का कहना है कि मैंने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान पोलैंड के समय का सारांश बताने की कोशिश की है, जिसमें भावनाएं, यातना, प्रेम, भय और घृणा सब कुछ है।
‘वेनिस’ जाने की प्रबल इच्छा रखने वाला मारक युद्ध के दौरान अपनी डायरी लिखता है। एक दिन वह लिखता है कि ‘’क्या रूसियों की तरह जर्मन भी ईश्वर में विश्वास करते हैं ? यदि हां, तो वे इतने बुरे क्यों हैं। मैं अब यहां नहीं रहना चाहता।‘’ उसकी आंटी उसे खुश करने के लिए अपने घर के तलघर में वेनिस शहर का एक मॉडल बनाती है, जिसमें नाव पर बैठकर मारक सचमुच के वेनिस शहर की सैर करता है। मारक लिखता है कि ‘’दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण चीज प्रेम है, मुझे अब प्रेम के बारे में सोचना चाहिए।’’ फिल्म में बहुत कम संवाद हैं। युद्ध के दृश्य तो बिल्कुल नहीं हैं। युद्ध में मरते, तबाह होते लोगों के परिवारों के दृश्य जरूर हैं। जो दुख और यातना की अंतहीन चादर लपेटे हुए अच्छे दिनों के आने का इंतजार कर रहे हैं। उनकी इस मुश्किल दुनिया में फिल्म उम्मीदों की रोशनी के रूप में बच्चों के सपनों को सामने ला खड़ा करती है।
ऑस्कर पुरस्कारों से सम्मानित फिल्म ‘स्लम डॉग मिलिनेयर’ की हीरोइन फ्रीडा पिंटो का यहां आना दर्शकों के लिए जबर्दस्त आकर्षण का विषय था। हालांकि अमेरिकी फिल्मकार वुडी एलेन की जिस नई फिल्म ‘यू विल मीट ए टॉल डार्क स्ट्रेंजर’ को दिखाया गया, उसमें फ्रीडा पिंटो का इस्तेमाल केवल शो पीस के तौर पर किया गया है। जैसे अनुपम खेर भी केवल 4 मिनट के लिए आते हैं। फिल्म की शुरूआत बड़े दार्शनिक अंदाज में होती है, जिसमें विलियम शेक्सपियर का एक प्रसिद्ध वाक्य हमें सुनाई देता है – ‘जीवन आवाजों और उन्मादों से भरा हुआ होता है लेकिन अंत में कुछ भी सार्थक नहीं बचता’। वुडी एलेन की यह फिल्म देखने के बाद सचमुच यह बात सार्थक हो जाती है क्योंकि हम एक दूसरे से यह पूछते हैं कि इस फिल्म का क्या मतलब है, यह सवाल और लाजमी है कि भारत के इस अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव में किसको चाहिए फ्रीडा पिंटो। हालांकि उन्होंने यह जरूर कहा कि इस फिल्म से उन्हें यह सीख मिली ‘’ उस पार मेरे लिए खुशियां ही खुशियां हैं’’। फ्रीडा पिंटो को भले ही खुशियां मिली हों पर फिल्म को देखकर निकले दर्शकों को भारी निराशा ही हाथ लगी।
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