सोमवार, 3 अक्तूबर 2011

फिल्में बेचने के लिए महिलाओं का हो रहा इस्तेमाल: गोविंद ठुकराल

यमुनानगर। सिनेमा में महिलाओं को ज्यादातर कमोडिटी की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। सिर्फ २५ फीसदी फिल्मों में ही महिलाओं को ही सही तरीके से दिखाया जाता है। जबकि बाकी ७५  फीसदी सिनेमा में महिलाओं का इस्तेमाल सिनेमा को बेचने के लिए किया जाता है। यह कहना है वरिष्ठ पत्रकार गोविंद ठुकराल का। ठुकराल चौथे हरियाणा अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समरोह में महिला समाज और सिनेमा विषय पर आयोजित विशेष सेमिनार में  बतौर मु य अतिथि बोल रहे थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता कालेज प्रिंसिपल डा. सुषमा आर्य ने की। 
ठुकराल ने कहा कि बंगाली, मराठी इत्यादि फिल्मों में महिलाओं के किरदारों को बड़ी संजीदगी से पेश किया जाता है। यही वजह है कि वहां क्षेत्रीय फिल्मों में महिलाओं की भूमिका उभर कर सामने आती है। लेकिन हिंदी फिल्मों में इसके विपरित हो रहा है। उन्होंने कहा कि आज फिल्मों में महिलाओं को लेकर फुहड़ता ज्यादा दिखाई जा रही है। जो कि गलत है। इस मामले में दर्शकों की जि ोदारी बढ़ जाती है। जब तक वे महिलाओं को सिर्फ इस्तेमाल की वस्तु साबित करने वाली फिल्मों को नहीं नकारेंगे, तब तक समाज में लोगों का महिलाहओं के प्रति नजरिया नहीं बदलेगा। उन्होंने मदर इंडिया, दो बीघा जमीन, मिर्च मसाला, पाथेर पांचाली का जिक्र करते हुए कहा कि इन फिल्मों में महिलाओं के किरदारों को पूरी दुनिया ने सराहा है। उन्होंने कहा कि आज के दौर में महिलाओं के सशक्त किरदार वाली फिल्मों में कमर्शियल वैल्यु कम होती है, यही वजह है कि वे फिल्में चल नहीं पाती। उन्होंने कहा कि आज हर क्षेत्र में महिलाओं की खुद की पहचान है। जबकि पहले वे अपने पति, पिता व दादा के नाम से जानी जाती थी। उन्होंने कहा कि छात्राओं को महिलाओं से संबंधित मुद्दों की विशेष जानकारी होनी चाहिए।
फिल्म मेकर गजेंद्र एस सोत्रिया ने क्षेत्रीय सिनेमा में महिलओं के किरदारों को किस प्रकार से प्रस्तुत किया है। इसके बारे में विस्तार से चर्चा की। इसके अलावा उन्होंने कहा कि महिलाओं का सिनेमा व सामाज में जो योगदान है, वह अतुल्नीय है। इसलिए हमारी जि मेदारी बनती है कि हम महिलाओं को आगे बढऩे के लिए प्रोत्साहित करें। ताकि वे देश के विकास में अपनी भागेदारी निभा सकें।
कालेज प्रिंसिपल डा. सुषमा आर्य ने कहा कि महिला-समाज और सिनेमा विषय पर आयोजित सेमिनार का मु य उद्देश्य कालेज की छात्राओं को फिल्मों व समाज में महिला की भूमिका से अवगत कराना है। उन्होंने कहा कि युवा देश का ाविष्य है और जब तक युवा पीढ़ी को इस प्रकार की चीजों के बारे में नहीं बताया जाएगा, तब तक देश के विकास में अपनी भागेदारी सुनिश्चित नहीं कर सकते। इसके अलावा उन्होंने आज के संदर्भ में बन रही फिल्मों व उनमें महिलाओं के किरदारों के बारे में विस्तार से चर्चा की। सेमिनार के दौरान मु य अतिथि ने विद्यर्थियों द्वारा पूछे गए प्रश्नों का बड़ी संजीदगी से जवाब दिया। कार्यक्रम के दौरा मंच संचालक डा. भावना सेठी ने किया। मौके पर हिंदी विभाग की अध्यक्षा डा. विश्वप्रभा, डा. गुरशरन कौर, डा. दीपिका घई उपस्थित रही।


-फिल्म मेकिंग के लिए संजीदा होना जरुरी: संजीव शर्मा-
यमुनानगर। फिल्म मेकिंग के लिए संजीदा होना बेहद जरुरी है। क्योंकि फिल्म मेकर की समाज क प्रति बहुत बड़ी जवाबदेही बनती है। उक्त शब्द मुंबई से आए एक्टर एंड डायरेक्टर संजीव शर्मा ने डीएवी गल्र्स कालेज में चौथे हरियाणा अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह के दौरान चलाए जा रहे फिल्म एप्रीशिएशन कोर्स के दौरान बाहर से आए विद्याथियों से रू-ब-रू होते हुए कहे।
संजीव ने कहा कि फिल्म मेकिंग में डायरेक्शन के लिए सबसे पहले स्क्रिप्ट की समझ होनी चाहिए। फिल्म बनाने में कितना पैसा खर्च किया जाएगा, इसका पता होना बेहद जरुरी है। इसके अलावा स्क्रिप्ट के हिसाब से करेक्टर की कास्टिंग जरुरी है। उन्होंने कहा कि अगर सही से करेक्टर का चयन हो जाता है, तो फिल्म मेकिंग का २५ प्रतिशत काम पूरा हो जाता है। इसके बाद टेक्निकली स्टाफ व लोकेशन की समझ होना भी बहुत जरुरी है। उन्होंने कहा कि फिल्म की सफलता के लिए उसकी मार्केटिंग जरुरी है। संजीव ने बताया कि फिल्म रूपी जहाज में डायरेक्टर कैप्टन होता है। उन्होंने बताया कि एप्रीशिएशन कोर्स के दौरान विद्यार्थियों को ईरानी फिल्म द लाइफ फार ड्रंकन हॉर्मिज दिखाई गई। इस फिल्म से संबंधित स्क्रिप्ट, सिनेमेटोग्राफी, एडिटिंग व डायरेक्शन पर विस्तार से चर्चा की गई। इसके अलावा विद्यार्थियों को फिल्म मेकिंग के लिए एप्टीट्यूड डवलेप कैसे किया जाए, इसके बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि आज का युवाओं के लिए फिल्म मेकिंग, सिनेमेटोग्राफी, एडिटिंग में कैरियर बनाने की अपार संभावाए हैं। कालेज में जो कोर्स चलाया जा रहा है, उसका मु य उद्देश्य विद्यार्थियों में फिल्म मेकिंग की स्किल्स डवलेप करना है। ताकि वे इस क्षेत्र में बुलंदियों को छू सकें। इस दौरान उन्होंने विद्यार्थियों द्वारा पूछे गए सवालों का बड़ी संजीदगी से जवाब दिया।
वहीं दूसरी ओर चल रहे इसी कोर्स में सिनेमेटोग्राफर वीके मलिक ने विद्यार्थियों को बताया कि सिनेमेटोग्राफी में उन्हें कंपोजिशन, मुड लाइट, कैमरा के मुवमेंट स्टोरी के हिसाब से कैसे होना चाहिए, इसके बारे में जानकारी होनी चाहिए। इसके अलावा लोकेशन को किस ढ़ंग से खिंचना (शूट करना) है, ताकि उसकी खुबसूरती पर्दे पर नजर आए। उन्होंने कहा कि अगर लोकेशन ठीक प्रकार से नहीं खिंची जाएगी, तो सारी मेहतन पर पानी फिरना लाजमी है। इसके अलावा उन्होंने कैमरा हंडलिंग, कैमरा के टाइप्स तथा सिनेमेटोग्राफी की लेटेस्ट तकनीक क्या है। इसके बारे में विस्तार से जानकारी दी। 
कालेज प्रिंसिपल डा. सुषमा आर्य ने बताया कि इस बारे उत्तरी भारत की वि िान्न विश्वविद्यालयों व कालेजिज से २५० विद्यार्थी भाग ले रहे हैं। जिन्हें सिनेमेटोग्राफी की बारिकियों से अवगत कराया जा रहा है।

1 टिप्पणी:

  1. Nice .

    Agree.

    ज़ुबां से कहूं तो है तौहीन उनकी
    वो ख़ुद जानते हैं मैं क्या चाहता हूं
    -अफ़ज़ल मंगलौरी

    जब से छुआ है तुझको महकने लगा बदन
    फ़ुरक़त ने तेरी मुझको संदल बना दिया
    -अलीम वाजिद
    http://mushayera.blogspot.com/2011/10/blog-post_04.html

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टिप्पणी के लिये धन्यवाद।