मुन्ना भाई को सजा के बाद मंडौली में नहीं जला चूल्हा
Posted On March - 21 - 2013
सुरेंद्र मेहता/हमारे प्रतिनिधि
यमुनानगर, 21 मार्च। मुंबई ब्लास्ट मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा संजय दत्त उर्फ मुन्ना भाई को पांच वर्ष की सजा सुनाए जाने पर उनके पैतृक गांव मंडौली में दिन भर चूल्हा नहीं जला। फैसला सुनाए जाने से पहले ग्रामीणों ने मंदिरों और मस्जिद में जाकर उनकी रिहाई की दुआएं मांगी। लेकिन ग्रामीणों की दुआएं भी काम नहीं आई और उन्हें सजा हो गई। जिसके बाद मंडौली गमजदा हो गया। संजय दत्त के चाचा-चाची का कहना है कि यह सजा संजय दत्त को नहीं बल्कि पूरे दत्त परिवार को मिली है, जिससे उभर पाना बहुत मुश्किल है।
बृहस्पतिवार सुबह होते ही मंडौली के ग्रामीण अपने प्रिय अभिनेता एवं नेता स्वर्गीय सुनील दत्त उर्फ बल्लु फौजी के लाडले बेटे की अदालत से रिहाई के लिए मंदिरों व मस्जिदों में जाकर दुआ मांगने लगे थे। ग्रामीणों को उम्मीद थी कि उनकी दुआ रंग लाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। दोपहर होते ही अदालत से जैसे ही मुन्ना भाई को पांच वर्ष की सजा का आदेश हुआ तो मंडौली गांव में मातम छा गया। लोगों के घरों के चूल्हों में सुलग रही आग शांत हो गई और ग्रामीणों के चेहरों पर मायूसी छा गई। ग्रामीण तुरंत मुन्ना भाई के मंडौली में रह रहे चाचा सोमदत्त के घर की और सांत्वना देने दौड़े। सांत्वना देने का सिलसिला देर शाम तक जारी रहा।
शूगर की मरीज एवं पिछले काफी दिनों से बीमार चल रहे चाचा सोमदत्त की जुबान मन की पीड़ा बयान करने के लिए भी उनका साथ नहीं दे रही थी और चाची का तो कहना था कि यह दत्त परिवार के लिए सबसे दुख की घड़ी है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले चाचा सोमदत्त गांव के ही मंदिर में थे और चाची घर में ही बने मंदिर में हाथ जोड़कर भगवान से संजय दत्त के लिए राहत की प्रार्थना कर रही थी। लेकिन जैसे ही टीवी पर फैसला आया दोनों निराशा के अंधकार में डूब गये।
संजय दत्त के चाचा सोमदत्त ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए बताया कि वह न्यायपालिका के फैसले का सम्मान करते हैं। हालांकि उन्हें उम्मीद थी कि संजय दत्त के स्वर्गीय पिता सुनील दत्त द्वारा देश के हित में किए गए कार्यों को देखते हुए मुन्ना भाई को सजा में छूट मिलेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
बुजुर्गों के लाडले और युवाओं के सबल एवं बॉलीवुड अभिनेता संजय दत्त के पिता बलराज उर्फ बल्लु फौजी (सुनील दत्त) का परिवार देश के बंटवारे के बाद मंडौली में आकर बसा था। इस गांव में सरकार ने सुनील दत्त के परिवार को 14 एकड़ भूमि आवंटित की थी। मंडौली में बस जाने के बाद सुनील दत्त ने सेना की नौकरी छोड़ दी और आकाशवाणी सिलोन में बतौर उद्घोषक की नौकरी कर ली। लेकिन कुछ दिन के बाद ग्लैमर की दुनिया उन्हें मुंबई खींच ले गई। वर्ष 1955 में संजय दत्त के पिता स्व. सुनील दत्त को पहली बार रेलवे प्लेटफार्म नामक फिल्म में काम मिला। इसके बाद बॉलीवुड में वह बेताज बादशाह बन गए। उन्होंने मुंबई जाने के बाद फिल्म अभिनेत्री नरगिस से शादी कर ली और संतान के रूप में संजय दत्त और प्रिया दत्त का जन्म हुआ। इसके बाद संजय दत्त के भी बॉलीवुड में छा जाने के बाद मंडौली गांव को देश भर में पहचान मिल गई। सुनील दत्त ने बालीवुड में पहचान बनाये जाने के बावजूद यमुनानगर को नहीं छोड़ा और वह बार-बार यहां आते रहते थे।
मुन्ना भाई को सजा के बाद मंडौली में नहीं जला चूल्हा
Posted On March - 21 - 2013
सुरेंद्र मेहता/हमारे प्रतिनिधि
यमुनानगर, 21 मार्च। मुंबई ब्लास्ट मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा संजय दत्त उर्फ मुन्ना भाई को पांच वर्ष की सजा सुनाए जाने पर उनके पैतृक गांव मंडौली में दिन भर चूल्हा नहीं जला। फैसला सुनाए जाने से पहले ग्रामीणों ने मंदिरों और मस्जिद में जाकर उनकी रिहाई की दुआएं मांगी। लेकिन ग्रामीणों की दुआएं भी काम नहीं आई और उन्हें सजा हो गई। जिसके बाद मंडौली गमजदा हो गया। संजय दत्त के चाचा-चाची का कहना है कि यह सजा संजय दत्त को नहीं बल्कि पूरे दत्त परिवार को मिली है, जिससे उभर पाना बहुत मुश्किल है।
बृहस्पतिवार सुबह होते ही मंडौली के ग्रामीण अपने प्रिय अभिनेता एवं नेता स्वर्गीय सुनील दत्त उर्फ बल्लु फौजी के लाडले बेटे की अदालत से रिहाई के लिए मंदिरों व मस्जिदों में जाकर दुआ मांगने लगे थे। ग्रामीणों को उम्मीद थी कि उनकी दुआ रंग लाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। दोपहर होते ही अदालत से जैसे ही मुन्ना भाई को पांच वर्ष की सजा का आदेश हुआ तो मंडौली गांव में मातम छा गया। लोगों के घरों के चूल्हों में सुलग रही आग शांत हो गई और ग्रामीणों के चेहरों पर मायूसी छा गई। ग्रामीण तुरंत मुन्ना भाई के मंडौली में रह रहे चाचा सोमदत्त के घर की और सांत्वना देने दौड़े। सांत्वना देने का सिलसिला देर शाम तक जारी रहा।
शूगर की मरीज एवं पिछले काफी दिनों से बीमार चल रहे चाचा सोमदत्त की जुबान मन की पीड़ा बयान करने के लिए भी उनका साथ नहीं दे रही थी और चाची का तो कहना था कि यह दत्त परिवार के लिए सबसे दुख की घड़ी है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले चाचा सोमदत्त गांव के ही मंदिर में थे और चाची घर में ही बने मंदिर में हाथ जोड़कर भगवान से संजय दत्त के लिए राहत की प्रार्थना कर रही थी। लेकिन जैसे ही टीवी पर फैसला आया दोनों निराशा के अंधकार में डूब गये।
संजय दत्त के चाचा सोमदत्त ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए बताया कि वह न्यायपालिका के फैसले का सम्मान करते हैं। हालांकि उन्हें उम्मीद थी कि संजय दत्त के स्वर्गीय पिता सुनील दत्त द्वारा देश के हित में किए गए कार्यों को देखते हुए मुन्ना भाई को सजा में छूट मिलेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
बुजुर्गों के लाडले और युवाओं के सबल एवं बॉलीवुड अभिनेता संजय दत्त के पिता बलराज उर्फ बल्लु फौजी (सुनील दत्त) का परिवार देश के बंटवारे के बाद मंडौली में आकर बसा था। इस गांव में सरकार ने सुनील दत्त के परिवार को 14 एकड़ भूमि आवंटित की थी। मंडौली में बस जाने के बाद सुनील दत्त ने सेना की नौकरी छोड़ दी और आकाशवाणी सिलोन में बतौर उद्घोषक की नौकरी कर ली। लेकिन कुछ दिन के बाद ग्लैमर की दुनिया उन्हें मुंबई खींच ले गई। वर्ष 1955 में संजय दत्त के पिता स्व. सुनील दत्त को पहली बार रेलवे प्लेटफार्म नामक फिल्म में काम मिला। इसके बाद बॉलीवुड में वह बेताज बादशाह बन गए। उन्होंने मुंबई जाने के बाद फिल्म अभिनेत्री नरगिस से शादी कर ली और संतान के रूप में संजय दत्त और प्रिया दत्त का जन्म हुआ। इसके बाद संजय दत्त के भी बॉलीवुड में छा जाने के बाद मंडौली गांव को देश भर में पहचान मिल गई। सुनील दत्त ने बालीवुड में पहचान बनाये जाने के बावजूद यमुनानगर को नहीं छोड़ा और वह बार-बार यहां आते रहते थे।
बृहस्पतिवार सुबह होते ही मंडौली के ग्रामीण अपने प्रिय अभिनेता एवं नेता स्वर्गीय सुनील दत्त उर्फ बल्लु फौजी के लाडले बेटे की अदालत से रिहाई के लिए मंदिरों व मस्जिदों में जाकर दुआ मांगने लगे थे। ग्रामीणों को उम्मीद थी कि उनकी दुआ रंग लाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। दोपहर होते ही अदालत से जैसे ही मुन्ना भाई को पांच वर्ष की सजा का आदेश हुआ तो मंडौली गांव में मातम छा गया। लोगों के घरों के चूल्हों में सुलग रही आग शांत हो गई और ग्रामीणों के चेहरों पर मायूसी छा गई। ग्रामीण तुरंत मुन्ना भाई के मंडौली में रह रहे चाचा सोमदत्त के घर की और सांत्वना देने दौड़े। सांत्वना देने का सिलसिला देर शाम तक जारी रहा।
शूगर की मरीज एवं पिछले काफी दिनों से बीमार चल रहे चाचा सोमदत्त की जुबान मन की पीड़ा बयान करने के लिए भी उनका साथ नहीं दे रही थी और चाची का तो कहना था कि यह दत्त परिवार के लिए सबसे दुख की घड़ी है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले चाचा सोमदत्त गांव के ही मंदिर में थे और चाची घर में ही बने मंदिर में हाथ जोड़कर भगवान से संजय दत्त के लिए राहत की प्रार्थना कर रही थी। लेकिन जैसे ही टीवी पर फैसला आया दोनों निराशा के अंधकार में डूब गये।
संजय दत्त के चाचा सोमदत्त ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए बताया कि वह न्यायपालिका के फैसले का सम्मान करते हैं। हालांकि उन्हें उम्मीद थी कि संजय दत्त के स्वर्गीय पिता सुनील दत्त द्वारा देश के हित में किए गए कार्यों को देखते हुए मुन्ना भाई को सजा में छूट मिलेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
बुजुर्गों के लाडले और युवाओं के सबल एवं बॉलीवुड अभिनेता संजय दत्त के पिता बलराज उर्फ बल्लु फौजी (सुनील दत्त) का परिवार देश के बंटवारे के बाद मंडौली में आकर बसा था। इस गांव में सरकार ने सुनील दत्त के परिवार को 14 एकड़ भूमि आवंटित की थी। मंडौली में बस जाने के बाद सुनील दत्त ने सेना की नौकरी छोड़ दी और आकाशवाणी सिलोन में बतौर उद्घोषक की नौकरी कर ली। लेकिन कुछ दिन के बाद ग्लैमर की दुनिया उन्हें मुंबई खींच ले गई। वर्ष 1955 में संजय दत्त के पिता स्व. सुनील दत्त को पहली बार रेलवे प्लेटफार्म नामक फिल्म में काम मिला। इसके बाद बॉलीवुड में वह बेताज बादशाह बन गए। उन्होंने मुंबई जाने के बाद फिल्म अभिनेत्री नरगिस से शादी कर ली और संतान के रूप में संजय दत्त और प्रिया दत्त का जन्म हुआ। इसके बाद संजय दत्त के भी बॉलीवुड में छा जाने के बाद मंडौली गांव को देश भर में पहचान मिल गई। सुनील दत्त ने बालीवुड में पहचान बनाये जाने के बावजूद यमुनानगर को नहीं छोड़ा और वह बार-बार यहां आते रहते थे।
इस मामले को भावनाओं से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिये। कोर्ट ने अपना काम किया, अपराध के लिये सजा दी। परिजन तो हर अपराधी के होते हैं, उनकी भावनायें देखने लगें तो किसी अपराधी को सजा ही न हो।
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