छोटे शहर-गांव की लड़कियों के बड़े कारनामे
यमुनानगर के कांसापुर जैसे ग्रामीण इलाके में रहने वाली मोनिका शर्मा आज किसी परिचय की मोहताज नहीं है। हाथ-पैर खराब होने के बावजूद वह मुंह से लिखकर स्नातक तक की परीक्षा पास कर चुकी है। मोनिका शर्मा जब 8 वर्ष की थी तब उसके दोनों हाथ व पांव किसी बीमारी के चलते काम करना छोड़ गए थे। मोनिका ने इससे हार नहीं मानी और इसे चुनौती मानते हुए इसका सामना किया। स्कूली पढ़ाई हो या कालेज की बोर्ड व विश्वविद्यालय की परीक्षाओं में मोनिका ने सदा ही अव्वल नंबर पर बाजी मारी है। मुंह में कलम दबाकर शानदार लिखाई लिखते हुए बिना किसी सहायक के ग्रेजुएशन करने वाली मोनिका इन दिनों पोस्ट ग्रेजुएशन की तैयारी में जुटी है। मोनिका जैसी लड़कियां दूसरों के लिए भी प्रेरणा है।
कर्णम मल्लेश्वरी की तरह ही यमुनानगर के गांव फतेहपुर की लड़कियां आजकल कुश्ती में अपने जौहर दिखा रही हैं। इस गांव की साया व सिमरण ने तो राष्टï्रीय स्तर की स्कूल प्रतियोगिता में स्वर्ण एवं रजत पदक हासिल किया बल्कि अब उनका लक्ष्य ओलंपिक में भारतीय पताका लहराना है। इस गांव की 4 अन्य लड़कियां भी कुश्ती में ही राज्य स्तर पर कई पदक जीत चुकी हैं।
यमुनानगर की पुत्रवधु समीरा जोकि दो वर्षों तक बतौर एयर होस्टेस एयर इंडिया के साथ जुड़ी रही और शादी के बाद अधिवक्ता के रूप में भी कुछ समय तक कार्य किया। इस दौरान वे जिला बार एसोसिएशन की सचिव भी बनी। बाद में उन्होंने अपनी इंजीनियरिंग कंपनी में बतौर कार्यकारी निदेशक कार्य संभाला। समीरा आज ओरियंटल इंजीनियरिंग का कार्य देख रही है। इसके अतिरिक्त समाज सेवा भी में भी समीरा का जवाब नही। न जाने कितनी सामाजिक संस्थाओं से जुड़कर वे समाज की सेवा कर रही है। उनका कहना है कि यह सब परिवार के सहयोग से ही संभव हो सकता है जो उन्हें अपने पिता के यहां भी मिला और अपने पति के यहां भी।
इसके अलावा महिला फैशन डिजाइनर मीतू सलूजा भी आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त कर रही हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर के पत्र-पत्रिकाओं में उनके लेख और डिजाइन प्रकाशित होते रहते है। अपने प्रोफेशन के अलावा मीतू विभिन्न समाज सेवी संस्थाओं से जुड़ी हुई हैं। आज कल वह खादी के साथ मिलकर विशेष अभियान चलाए हुए है। उनका कहना है कि महिला दिवस पर महिलाओं को हर क्षेत्र में जागरूक करने का संकल्प लिया जाना चाहिए।
सड़क के किनारे झोपड़ी में रहकर विभिन्न देवी देवताओं की प्रतिमाएं बनाने में कल्पना व छाया भी किसी से पीछे नहीं है। धूप हो या बरसात यह महिलाएं अपने बच्चों का लालन-पालन करने के लिए कार्य करती रहती हैं।