मंगलवार, 31 मई 2011

आओ साग बनाएं, खाएं और खिलाएं ।

आओ साग बनाएं, खाएं और खिलाएं । 

वैसे तो बासा कुछ नहीं खाते,
               सुबह का बना रात को फैंक आते।
पर जब बात आये साग की,
               तो दो-दो दिन का एडवांस बनाते।।  आओ साग बनाएं.....

फ्री के भाव मिलता है,
               जेब पर ज्‍यादा बोझ नहीं पड़ता है।
बनाते हुए जब पड़ता है रिड़कना,
               तो फ्री में कसरत हो जाये।। आओ साग बनाएं.....

मक्‍की की रोटी हो,
               तो बिन साग लगे बेसवाद।
नानी के घर जाना हो,
               तो साग जरूर मिलना चाहिए वहां।। आओ साग बनाएं.....

अगर पड़ौसी के भी बना हो,               
               तो मांग कर भी ले आते हैं साग।
शादी में भी सबसे पहले अब लोग,
               देखते साग की स्‍टॉल।। आओ साग बनाएं.....

4 टिप्‍पणियां:

  1. जब यमुनानगर आओगे तो जरूर खिलायेंगे। नहीं तो अविनाश सर जी के बेटे की शादी में तो जरूर मिलेगा।

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  2. सही कहा जी, साग तो हरियाणवी खान-पान का अभिन्न हिस्सा है।

    आओ मिल कर गायें, साग बनायें, खायें और खिलायें।
    न बना पायें तो कहीं से जुगाड़ लगायें, पर अवश्य खायें।

    साग अकेला स्वाद न होगा, मक्की की रोटी भी पकायें।
    गर्मागर्म पर मक्खन लगाकर, उदरस्थ कर जायें।

    साथ में हो गर ठण्डी लस्सी तो मजे ही आ जायें।
    खा के मक्के की रोटी ते सरसों दा साग, भवसागर तर जायें।

    आओ साग...

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  3. वाह पंडित जी,

    अब हुई साग की महिमा पूर्ण।


    आपने तो वाकेई चार चांद लगा दिये,

    साग के गुणगाण में।।

    धन्‍यवाद।

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टिप्पणी के लिये धन्यवाद।