मंगलवार, 15 मार्च 2011

अबके भी खूब जले कृषि अवशेष यमुनानगर में

अबके  भी खूब जले  कृषि अवशेष यमुनानगर में
इंसान अपने आप को इस धरती का सबसे समझदार प्राणी मानता है। बावजूद इसके वह ऐसी-ऐसी हरकतें करता है कि उसकी अक्ल पर कभी-कभी तरस आने लगता है। आपने भी अपने जीवन में ऐसी तमाम घटनाएं देखी होंगी और टाल गये होंगे। लेकिन जब मामला धरती माँ का हो, तो चिन्तित होना स्वाभाविक है। ऐसी ही एक गम्भीर चिन्ता से अवगत करा रहे है आप को
अबके भी खूब जले कृषि अवशेष
एक कहावत या कुछ और बचपन से सुनते आये है कि हरियाणा का कल्चर है तो वो है एग्रीकल्चर परन्तु इस नई जनरेशन के किसानो ने तजर्बे की कमी और जल्दी जल्दी अमीर बनने की खवाहिश के मद्देनजर शोर्ट-कट अपनाने शुरू कर दिए है सरकार आदेश देती है
ये नई जनरेशन के किसान उसे समझते ही नहीं है |
पिछले चार वर्षों से जिला प्रशाशन अखबार के व लोकल टीवी चैनलों के माध्यम से कृषि अवशेष न जलाने बारे आदेश प्रसारित करवाता है शुक्र है किसानो को ये तो पता लग गया कि कोई जीवाणु/कीड़े होते है वो खेतों में ही कृषि अवशेष जलाने से मर जाते है इसलिए खेतों में ही कृषि अवशेष नहीं जलाने चाहिए हाय री ज्ञान की इन्तहा! वो कृषि अवशेष खेतों से तो उठ गए और आ गए सड़कों के किनारे किनारे कई किलोमीटर तक गन्ने की पात्ती, गेंहू के पोरे, सूरज मुखी के टंडे, धान की पुराली, लहसुन के अवशेष, पापुलर के पत्ते आदि कृषि अवशेष जला दिए जाते है पर अपने खेतों में नहीं सडको के किनारे पर |एक दम सुरक्षित एवं सरल उपाय सुबह सवेरे फेंकों रात के अँधेरे में फूंको !! क्या अपनी ऐसी तेसी करवा लेगी ग्लोबल वार्मिंग|
कृषि अवशेष को जलने से रोकना होगा,किसानो को प्रेरित करना होगा कि कृषि अवशेष जलाने से किसान थोड़ी मेहनत से तो बच जाता है परन्तु इसका खेत की उर्वरा शक्ति,पर्यावरण और जैव विविधता पर बुरा प्रभाव पड़ता है इस कुकृत्य को रोकना होगा और कृषको को जागरूक करना  होगा |





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