सोमवार, 22 नवंबर 2010

अगले बरस फिर आने का वादा कर लौट गये श्रद्धालु, मेला श्री कपाल मोचन,पांचवा दिन

आपको हिसार का खुंडा चाहिए। यूपी की गर्म लोई चाहिए। कुंडी सोटा चाहिए। सिल पत्थर चाहिए। या मुसल। लकड़ी के बरतन। शायद यह सामान किसी बड़े माल में एक साथ उपलब्ध न हो। लेकिन कपाल मोचन मेले में आपको यहा सारा सामान आसानी से उपलब्ध है। आज भले ही माल कल्चर पनप रहा है। हर कोई खरीददारी के लिए माल में जाना पंसद करता है। इस माल कल्चर मेें मेला भी अपना वर्चस्व कायम किए हुए हैं। और, यही वजह है कि यहां आने वाले कस्टमर किसी माल के कस्टमर से  शायद ही कम हो। खरीददारी का यह अपने आप में बड़ा रिकार्ड है। ऐसा रिकार्ड जिसे कोई रिकार्ड तो नहीं करता। लेकिन मानते सब है। यहां आने वाले बहुत से लोग ऐसे है जो साल पहले ही खरीददारी की प्लानिंग कर लेते है। फसल कटती है। मेले में आते हैं। अपनी खरीददारी कर निकल जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार इस बार मेले में दस लाख से अधिक श्रद्धालु आए। इसमें से अधिकतर ने कुछ न कुछ जरूर खरीदा है। ऐसे में  मेले को हम माल का देसी संस्करण कहे तो, यह कोई गलत बात नहीं होगा।

पीढ़ी जोड़ती है परिवार को
इस मेले के बारे में एक मान्यता है पीढ़ी खरीदने की। इसके पीछे सोच है कि यहां से खरीदी गई पीढ़ी उनके वंश को आगे बढ़ाने में सहायक होती है। इसके पीछे एक ओर सोच है। वह यह कि पीढ़ी स्वर्ग का रास्ते को साफ करती है। यहीं वजह रही कि हर कोई यहां पीढ़ी खरीद रहा था। इसी तरह से अन्य प्रदेश से आने वाले श्रद्धालु यहां एक पांच समान जरूर खरीदते हैं। इसमें एक पत्थर का सामान भी शामिल होता है। इस बार भी पीढ़ी के प्रति हर किसी का जबरदस्त रुझान रहा।
चकाचौध से दूर, आस्था और विश्वास है यहां
अपने इस देसी माल में चकाचौध नाम की चिडिय़ा नहीं है। यहां माल को डिस्पले पर कोई खर्च नहीं किया जाता। कोई माडल नहीं। कोई विज्ञापन नहीं। एसी भी नहीं। मैनेजमेंट कौर्स किए सेल्जमैन भी नहीं। टंैट के नीचे दरी पर बैठ कर ही यहां माल की बिक्री होती है। यहां उत्पादक ही सेल्जमैन है। उनका माल विश्वास, यकीन और भरोसे के साथ श्रद्धा और आस्था पर बिकता है। 
खिलौने में बिके ट्रैक्टर
क्योंकि मेले में आने वाले अधिकतर श्रद्धालु ग्रामीण पृष्टिभूमि से हैं। खिलौने में वे ट्रैक्टर ट्राली और खेती में काम आने वाले औजार के माडल को तवज्जो दे रहे थे। भटिंडा से आए श्रद्धालु गुरमुख  सिंह ने बताया कि उनके बच्चे इसी तरह के  खिलौने चाहते हैं।
साल की रोटी निकल जाती है यहां से
यूपी के मसरुफ खान ने बताया कि इस मेले से उनकी साल की रोटी निकल जाती है। वे यहां गर्म लोई लेकर आए हैं। दो लाख माल लेकर आए हैं। जो कि लगभग साढ़े तीन लाख में बिक जाएगा। यह स्थिति उनकी अकेले नहीं है। लगभग हर दुकानदार इतना कमा लेता है। 

 जहां झूके शीश, बस इष्ट  वहीं तो रहते है
श्रद्धा विश्वास और यकीन के आगे चांद सितारे भी नतमस्तक हुए। रात के १२ बजे शुरू हुआ स्नान। दिन भर चलता रहा। रात का दूसरा पहरा। जिसमें सब शांत हो जाता है। पर यहां तो हर कोई सक्रिय है। सरोवर का पानी। श्रद्धालु भी। ठंडी हवा और चांद सितारे भी। लेकिन यहां तो आलस्य दूर दूर तक भी नहीं था। और तभी १२ बज गए। जयकारों के साथ भीड़ का रेला कपाल मोचन में ठंडे पानी में उतर गया। किसी को किसी की चिंता नहीं। न कपड़ों की। न सामान की। रात है कुछ हो सकता है। परवाह नहीं। ऐसी बेफिक्री किसी तीर्थ पर ही हो सकती है। और फिर कपाल मोचन तो सभी  तीर्थों का सिरमोर है। हर शीश यहां झूक रहा है। विश्वास, यकीन और भरोसे के लिए। महसूस हो रहा था, इष्ट हमारे आस पास है। चांद सितारे भी इस मौके के साक्ष्य बनने के लिए आतूर हो रहे थे। शायद ठंडी हवा भी इसी प्रयास में थी। कार्तिक पूर्णिमा का चांद भी ठहरने को मजबूर हो रहा था। सितारे हर श्रद्धालू की यहां उपस्थिति दर्ज कर रहे थे। सुबह जब सुरज की पहली किरण ने पवित्र सरोवर के जल का स्पर्श किया तो यहां से दस लाख श्रद्धालु स्नान कर निकल चुके थे। कहते हैं सारे तीर्थ बार बार। कपाल मोचन एक बार। यहां स्नान करने का पुण्य सबसे बड़ा है।
सुख की कामना के साथ मौक्ष का मार्ग भी प्रश्स्त कर गए
कपाल मोचन श्रद्धालु को उसके पाप से ुमुक्ति दिलवाता है। मान्यता है कि भगवान शिव को भी कपाली से इसी सरोवर में स् नान करने से मुक्ति मिली थी। जहां भगवान स्वयं पाप मुक्त होने आए हो। तो हम बंदों की तो बिसात ही क्या? गुरु गोङ्क्षबद सिंह भी यहां आए थे। गुरु नानक देव जी भी यहां आए थे। जिससे इस तीर्थ के प्रति सिख समुदाय में भी बड़ी श्रद्धा है। 

कतारबद्घ हो किया स्नान
यहां रात में तीन  सरोवर में स्नान करने की परंपरा है। इस रात भी इसका बखूबी निर्वाह किया गया। भीड़ में कोई छूट न जाए। इसलिए हर टोली एक दूसरे का पल्ला पकड़ कर आगे बढ़ती है। इस तरह की टोली जहां सामूहिकता का अहसास करा रही थी, वहीं सुरक्षा का भी। सबसे पहले कपाल मोचन पर स्नान हुआ। इसके बाद ऋण मोचन। अंत में सुरजकुंड में स्नान कर अपने गतंव्य को प्रस्थान कर गए।
समाज सेवा का बड़ा केंद्र है कपाल मोचन
यहां हर किसी का उद्देश्य समाज सेवा है। कोई भंडारा लगता है। कोई व्यवस्था में मदद करता है। इससे प्रशासन का काम तो आसान होता ही है। श्रद्धालुओं को भी खासी सुविधा मिलती है। मेले से कई दिन पहले ही भंडारे लगने शुरू हो जाते हैं। जो मेले के बाद भी जारी रहते हैं। हर साल की तरह इस बार भी करीब चालीस लंगर मेला क्षेत्र में लगे। इसमें पंजाब से भी बड़े साधु महंत आए। एनआरआई अमरीक सिंह ने इस बार भी विशेष तौर पर लंगर लगाया। इसी क्रम में बाबा बंसी वाले का भंडारा भी दिन रात चलता रहा।

पर्दे के पीछे रह कर करते रहे सेवा
मेले के आयोजन में कई समाजसेवी संंगठन भी दिन रात लगे रहे। मेले की व्यवस्था संभाली हो। भीड़ को नियंत्रण करना हो। किसी बीमार की मदद करनी हो। हर जगह स्वयं सेवक तैयार मिलेंगे। मानवोदय जनसेवा संगठन, भारतीय महावीर दल पंजाब समेत हरियाणा और रेडक्रास सोसायटी के स्वयं यहां दिन रात लगे रहे।
रोशनी में नहाया रहा कपाल मोचन
चार दिन से यह क्षेत्र रोशनी में नहाया हुआ है। साल के बाकी दिन विरान रहने वाला यह क्षेत्र इन दिनों पूरी तरह से गुलजार है। १५ किलोमीटर की परिधि में लाइटिंग की गई है। जो रात के माहौल को भी दिन में बदलने की कुव्वत रखे हुए थी।
इनकी रही सक्रिय भागेदारी
मेले में डीसी अशोक सांगवान दिन रात लगे रहे। उनके एसपी संदीप खिरवार,, डीएसपी अशोक कुमार, कुशल पाल, अशोक सभ्रवाल, मेला प्रशासन सतबीर सिंह मान, सिविल सर्जन वीके शर्मा, डाक्टर एमएस सहगल, आरके शर्मा, हजारी लाल वर्मा बीडीपीओ बिलासपुर कुलजीत सिंह दहिया, रामशरण, सुशील कुमार, राजेश कुमार, अशोक कुमार, नरेंद्र सिंह व डीइओ सरीता भंडारी भी दिन रात मेला क्षेत्र में लगे रहे।



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